Sunday, 29 December 2024

Kachori

 

"बोलने का ही नही खाने का भी तहज़ीब दिखेगा आप को उत्तर प्रदेश में और जो दिखेगा चारों तरफ़ वह हैं ‌गर्मागर्म कचौड़ी"

"Uttar Pradesh offers a diverse range of kachoris, whether it's from Mathura, Haridwar, Lucknow, Varanasi, Prayagraj, or any other city. Kachoris here are traditionally paired and enjoyed with aloo bhaji (dubke aloo bhaji). Some vendors also enhance the bhaji by adding peas or bari for additional flavor."

 "जलेबी को नही भूलता वह भी साथी ही‌ हैं कचौड़ी की उसके बीना सब सूना।"

Pakshala

"इस से पहले कि मै लिखना‌ चालू करूं एक अंतर को समझ लेना ज़रा जरूरी है और वह हैं पूरी और कचौड़ी के बीच का अंतर।"मै यह बात अक्सर बोलता हूं की नाम को समझने के लिए संधी-विछेद करे और जब आप कचौड़ी को‌ तोड़ कर देखेंगे तो जो उच्चारण होगा वह संस्कृति से निकला होगा कच + पूरिका कच का शाब्दिक अर्थ है बांधना और पूरिका से तात्पर्य पूरी के आकार से है।
 
Pakshala

पूरी मूलतः आटा हैं वहीं कचौड़ी पुणतह मैदा ( दोनो गेहूं से ही बनते हैं और गुणों में भिन्न-भिन्न है।)
पूरी सादी और भरी दोनों होती हैं और भरवां के मामले में कचौड़ी से सवा शेर है। कचौड़ी भरी होती है और 'भरी ही भाती' है।‌ 
पूरी बेल कर बनाई जाती हैं ‌कचौडी हाथेलियो ‌के दबाव ‌से‌ बनाया जाता है। वैसे कही‌-कही बेलन लगया ही जाता है। कुछ एक विविधता में वह सादी‌ भी‌ मिलती है।

"कचौड़ी की बनावट दर्शाती है कि उसे कैसे गुथा गया होगा। मैदा/आटा कैसा लगाया गया हैं। मुलायम/सख्त/बीच का।" बाकी राज़ तो हाथों में भी छिपा होता‌ है......


कचौड़ी एक भरी फूली करारा तली हुई नाशता है। शुद्ध देशी धी नही तो वनस्पति में तला कचौड़ी ‌ही पंसद की जाती है। भरवां खानें वालों की पसंद के अनुसार ही उपलब्ध हैं। "एक विरासत हैं कचौड़ी एक शहर की पहचान और मिज़ाज हैं कचौड़ी।"

( यहां मुझे मेरी मां के हाथ की बनीं सादी कचौरी याद आ रही है, जिस में मंगरेला का उपयोग होता है। आप सब ने अपने घरों मे "MOIN' के बारे में सुना होगा। ( मोइन) यह मैदा में धी या वनस्पति का उपयोग है जो कि करारापन/कुरकुरापन प्रदान करता है। मोइन‌ का अर्थ होता है 'सहायक' ..... हम कचौरी का मज़ा आलू भुजिया और पापा के हाथ से बनी जलेबियों के साथ करते थे। उन्हें जलेबी का कपड़ा आपने हाथ से बनाना पसंद था बजार से नही मंगाते थे ना कभी जलेबी का Culture लाएं। )


ऐसा देखा जाता है आप आनंद ले रहे होते है और स्वाद जिज्ञासा को बढ़ाने का काम कर रहा होता है कि यह बना कैसे होगा?? क्या मिला है? मसालों का इस्तेमाल अच्छा हुआ है!! और यह आप के शहर से भिन्न ज़ायका है!! ऐसे कई सवाल एक साथ दिमाग़ में घूमने लगेंगे। बातों मे फंसे मत, "जो उपलब्धता है, जो समाज को पसंद हो, वही भरे जाते है।" उरद, मूंग,मटर, चना, बेसन !!! सम्भवतः उरद का इस्तेमाल ज़्यादातर जगहों पर हैं।

महर्षि चरक के अनुसार धी का इस्तेमाल पतझड़ में करना हीतकारी है। गेहूं ठंड में खाई जानें बाली अनाजों में ‌से एक होती थी। कही ना कही यह तथ्य भी पाचन ‌से ही सम्बन्धित है।

लखनऊ के कचौड़ी की जब ‌बात चलतीं है आप पाएंगे की यह अपने ‌आप‌ मे यहां के निवासियों के लिए सम्मान ‌की बात है कि उनके मुंह के मिठास की तरह सहसा निकलेगा 'khasta' कहेंगे कि कोई ज़बाब नही चाचा हमारे खास्ता का..


GTRoad के अपने पाक यात्रा पर मैंने khasta को परोसा है। आलू की सूखी सब्जी के साथ खाई जानें वाला यह व्यंजन वहां के रहने वालें ब्राह्मण समाज की धरोहर हैं। मैंने नवरत्न चटनी जो की मेवों ‌और फलों से बना था‌ को भी अतिथियों के साथ सांझा किया था।

Pakshala


बनारस में कचौड़ी बनारसी रंग ढ़ंग लिए हुए मिलेगा। यह कलेवा बनारस की पहचान है। आप जहां भी निकले जाइए आप को दिख जायेगा गलियों में तलती हुई कचौड़ियां, "बडी भी और छोटी भी".....
जो मैदा और आटे दोनो से तैयार किया हुआ मिलेगा। क्या?? अरे धबडाए नहीं!! रूकिए यह पूरी नही...... दोनो ही कचौरी है भईया!!! समझाता हूं.......छोटी कचौड़ी में आलू डला हैं भरवां के रूप में और मैदा के साथ बना है दूसरी बड़ी वाली की विशेषता यह है कि वह मोटे चोकरयुक्त आटे का बना है और उरद की पिठी (कूटे मसालों और हींग के साथ) का उपयोग भरवां के रूप में किया जाता है। हुआ अचरज!!! फिर‌ भी यह पूरी ना हो के कचौड़ी ही है‌। इसके साथ जो सब्जियां खाई जाती है उसमें से ३६५ दिन कद्दू की सब्जी होती है। इसके आलावा कद्दू आलू, घुघनी, कभी बरी, कभी बैंगन....... हैं छोटी के साथ चटनी परोसें जाते है ऊपर से जो ज़ायके को और बढा देते है।
 ऐसी ही‌ अनगिनत विविधताओं से भरा पड़ा है भारत की पाकशाला।


आगरा में कचौड़ी कि एक प्रकार बेडई का भी हैं। बेडमी पूरी की‌ तरह ही बेडई में उरद का ही इस्तेमाल होता हैं।

देसी घी और वनस्पति के उपयोग: ऐसा माना जाता है कि कुछ लोगों के अनुसार, रिफाइंड तेल का मोयन कचौरी को अधिक खस्ता और कुरकुरा बनाता है।

कुछ रोचक तथ्य:- 
 • आटा बग़ैर छना हुआ इस्तेमाल करना चाहिए इससे कब्ज़ नही‌ होगा पौष्टिक तत्वों को पचाने में सहायता मिलेगी।
 • भाजी में कजरी का इस्तेमाल।