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Darbar Sahib (Courtesy :- Pakshala) |
The Grand Trunk Road Culinary Journey की “शुरुआत मैने अमृतसर से
की और दिल्ली, बनारस होते हुए कलकता में मैने अपनी इस पाक यात्रा को समाप्त किया।”
अमृतसर में मेरे पास दो
दिन का समय था। दोपहर का लंच, रात का भोजन और फिर अगले दिन का ब्रेकफास्ट
और फिर ख़ुद और परिवार के लिए शौपिंग और शाम की शताब्दी से दिल्ली वापसी।
अमृतसर पहुच कर मैं सबसे
पहले Golden Temple आया। पवित्र कुंड में डुबकियां लागाई, मन ही मन Darbar Sahib जी का शुक्रिया अदा किया, माथा टेका, काढ़ा प्रसाद खाया, लंगर चखा, रसोईघर के चक्कर लगाएं
और एक सवाल जो मन में था,उसका हल पूछा।
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Courtesy :-Pakshala |
लंगर की दाल को लंगर की दाल क्यों कहते
है? उन में किन दालों का प्रयोग होता हैं??“लंगर यानी ‘सेवा भाव’ और भावनाओं से किया गया दान से बनने वाली दाल को ही लंगर की दाल कहते हैं।
प्रायः माँह की दाल के साथ अन्य दालों को मिला कर बनाया जाता हैं। और है.....
सारी समाग्री को धी के साथ ही कढ़ाई में डाल दिया जाता हैं, छौका रहित एवं स्वादिष्ट।”
इस से पहले मैं अपनी लेखनी
को कुल्चे की ओर मोड़ दूं, अतीत की यादों को कुरेदना चाहूंगा......
'तंदूर और यादे'
अतित के यादों में गोते
लगाने पर मुझे कुछ वाकया याद आया..... जो मै उल्लेख करना चाहूंगा, "बात उन दिनो की है, जब पिता जी के प्रमोशन
होने के कारण हम बोकारो सेक्टर 6 'A' में रहने आए.... साल
था १९९०!!! हमारे क्वार्टर के ठीक नीचे सरदार चाचा रहते थे और उन दो
सालों में हमें चाची के हाथो के बने तंदूरी रोटियों को खाने का सौभाग्य कई बार प्राप्त
हुआ था।" तंदूर के बारे में उनका कहना था कि,"ग्रामीण पंजाब जहां परिवार, गांव के घर के आंगन में
मिट्टी के ओवन में पके हुए गर्म रोटियों को खाने के लिए एकत्रित होते हैं, उसे ही तंदूर कहा जाता
है।" ऐसा ही मंज़र हुआ करता था ठंड के दिनों मे उनके बागान में।
"पंजाब मे तंदूर अभी भी
ग्रामीण इलाकों में लगभग हर आंगन और छोटे शहरों और शहरों के कई पिछवाड़े और बालकनी
की ओट में सबसे आम दृश्य हैं।"
अमृतसरी पाक कला!! जी हां।...
काढ़ा प्रसाद!! जी हां ।.....लंगर की दाल!! जी हां ।......दूध, दही पनीर सब वेस्ट!!.....जी हां।..... रूके ज़रा!! ऐसे आपकी
पसंद को पूर्ण विराम लगाना ज़रा मुश्किल होगा।
“अनगिनत
पाक विभिन्नताओं से भरा पड़ा हैं यह प्रदेश।”
अगर एक अमृतसरी व्यंजन
के नाम लेने की बारी आएगी तो पहला स्वाद का तड़का जो आपके ज़ेहन में लगेगा, वह होगा ‘अमृतसरी छोले
कुल्चे’ का.....यहां
कुल्चे दो तरह का होते हैं। एक ‘सादा’ (जो गिला कुल्चा में इस्तेमाल
होता है) और दूसरा ‘भरवां’ जो तंदूर से निकलता है।
सुबह
का नाश्ता है..... यह
कुलचा!!! जो अब पुरे दिन बिकते देखा जा सकता हैं!! शहर में।अपनी अलग खुबियों कि ही वजह से कुल्चा Amritsar में सब से ज्यादा पसन्द किया जाने वाला Street Food है, अगर हम कुछ Example देखे जैसे Agra का घी के पराठे, South का ड़ोसा, Bihar का लिट्टी चोखा, Hyderabad का हलीम, Maharashtra का पाव भाजी, Delhi में बेड़मी पुरियाँ और खास निहारी कही ना कही ये नाश्ते भी अपनी अलग खुबियों कि वजह से popular हैं and they are available throughtout the day!!!
अमृतसर का छोला और कुल्चा
क्या जबरदस्त मेल हैं, इनका आपस में। काबिले तारीफ़!!! जहां कुल्चा परतदार होता
है और घी से लबालब-सराभोर होता हैं और बाद में पक जाने पर तो, जी..... ऊपर से और माखन के
साथ भी परोस दिया जाता हैं। वही छोले को इतना गला देते है कि बिना दांत वाले भी आनंद
ले ले। छोले को बिना तड़के के पकाया जाता है ताकि स्वाद और भारीपन को संतुलित किया
जा सके। एक भारी तो दूसरा थोड़ा राहत देने वाला।
By the
way, believe me, enjoy the kulcha....... We don't get fat in a day!!
You are in the food city of Amritsar..... Just enjoy the taste
Paaji!!
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Kulcha (Courtesy :-Pakshala) |
अमृतसर को कुल्चे की दुनिया में सर्वश्रेष्ठ
स्थान प्राप्त हैं यदि आप भी यह मानते है तो निसंदेह विश्वास करें इस बात पर कि, "यह मिट्टी और पानी की वजह
से हैं।"
अगर हम कुल्चा बनाने की
तकनीक की बात करे तो यह कई बातों पर निर्भर करेगा कि आप ने बनातें समय किन-किन पहलुओं
को छुआ। आलू और चने दोनो का स्वाद अच्छी तरह से उबालने में निहित हैं, "आलू को इस तरह से पकाना
एक कला है, जहां वह पानी को बिल्कुल भी सोखे। काली मिर्च, जीरा, धनिया, लाल मिर्च मसले आलू के
साथ मिल कर स्वाद को और बढ़ा देते हैं। अनारदाने का इस्तमाल कुल्चे
और छोले दोनो में हैं और यह स्वाद को निखार देता हैं। चने को तब तक पकना है, जब तक कि वह पुरी तरह
से गल न जाए, इसलिए इसे खाने के मिट्ठे सोडा के साथ पकाया जाता हैं। जो खाने के बाद पाचन
में भी मदद करता है। मैदा को दूध दही के साथ देसी घी से १० से १२ परतों
के गुणकों में गूंथ लिया जाता हैं।
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Kulcha Dough (Courtesy :- Pakshala) |
Leavening agents
are those substances that help the dough to raise there by trapping air. Usually
yeast, baking soda, baking powder is used. For many Indian breads, yogurt is
used to ferment the dough.
‘शरबती तथा बंसी’ भारतीय गेहूं की दो किस्में
हैं, जिनका उपयोग चपाती बनानें में किया जाता हैं।
हमारे यहां परंपरागत मुलायम सफेद गेहूं भी पाया जाता है। जिसे ‘पिस्सी’ कहते
है, जो मैदा बनाने के लिए उपयुक्त होता है।
विद्वानों का मत हैं कि,"सिन्धु घाटी में गेहूँ
की खुदाई हुई है और यह भी प्रमाण मिला की तंदूर जैसे दिखने वाले मिट्टी के चुल्हे को
हड़प्पा समय में प्रचलन में लाया जाता था।" गौर करे तो हम पाएंगे
कि गेहूँ वह आधार है, जहाँ से हमें आटा मिलता है वास्तव में गेहूँ
की खेती ने ही मनुष्यों को गृहस्थ बना दिया!! "गुरू नानकदेव जी ने
भी सांझा चूल्हा के जरिए भोजन से जुड़ी स्थायी परंपराओं को बढ़ावा दी और लगभग पंजाब
के हर शहरों में फैलाया।"
इस प्रतिष्ठित, पवित्र शहर की अपनी पाक-यात्रा में मैंने (The Grand
Trunk Culinary Journey) यह पता लगाया कि छोले बनाने के दो तरीके हैं, एक सरसों के तेल के साथ और
दूसरा तरीका है कि उबले हुए चना में एक-एक करके कूटे हुएं सभी secret ingredients को मिला दिया जाए। "आलू को खाली तेल के कनस्तरों में उबाला
जाता है और ऊपर से जूट के बोरे से ढक दिया जाता हैं।" यह
तरीक़ा आलू को पानी पीने से रोकने के लिए किया जाता है। चने पर यह विधी 'work like a pressure cooker.'
वैसे भी हम मनुष्य गलतियों
के पुतले होते हैं और जल्दी इसका अभास भी कर लेते हैं। सीखने की ललक एक अच्छे व्यक्तित्व
के लिए जरूरी कारक हैं और पाकशाला में इसके महत्त्व को नजरंदाज करना मुश्किल है।
सामान्य गलतियाँ जो ध्यान में रखने योग्य हैं :-
आलू के मिश्रण में सीधे
प्याज, हरी मिर्च और अदरक न डालें, इसे बारीक़ नहीं थोडा मोटा
काट कर तेज आंच पर भूनें और बाद में मिश्रण में डालें। यह भी तरीक़ा नमी से बचने के
लिए है।
Interesting facts :-
आवश्यकता पड़ने पर अतिरिक्त
नमी को सोखने के लिए ब्रेड के बुरादे को आलू के मिश्रण में भी मिलाया जाता है। सुनिश्चित करे, कुल्चे का भरवाँ न जादा हो न कम।
तैयार कुलचे के ऊपर चाट
मसाला के साथ भुना हुआ अजवाइन डाला जाता है। मैने देखा और इस्तेमाल भी किया है..... अजवाइन
के दो या तीन संस्करणों को कुल्ले के ऊपर छिड़के। यह स्वाद को ना केवल बढ़ाता है बिल्कुल
साथ में आपने पेट को राहत भी प्रदान करता हैं।
छोले की वह तैयारी जो
सूखे आंवले के साथ उबाले जाते है तथा चना मसाला और गर्म मसाले के छिड़काव के साथ ही
ऊपर से गरमा गरम छना हुआ शुद्ध देशी घी (कूटें लहसून मे पकाया
हुआ) डाल कर पकाएं जातें हैं पिंडी छोले कहलाते है। ये चने भटूरे या पूरी के साथ खाने में बेहतर स्वाद
देते हैं।
“आप देखेंगे अजवाइन का
इस्तेमाल हर उस व्यंजन में होता हैं जो खाने के बाद पेट को फूलाता हैं।”
इमली प्याज की चटनी के
बिना छोले कुल्चे की थाली का अनुभव
पूरा नहीं हो सकता है, इसे अवश्य परोसे और अगर ना मिलें तो मांगे।
और घर पर बनाना हो तो इमली के गूंदे मे कटा प्याज, मिर्च, नमक और थोड़ा धनिया
और पुदिने का पेस्ट मिला दे और थोड़ा पतला रखे।
Both wood and
coal can be seen being used to heat up the tandoor; the ideal temperature
should not be more then 240°F to bake a good golden flaky kulcha
"तंदूर का तापमान महत्वपूर्ण है, कम आंच पर पका कुल्चा ही स्वाद को चार-चांद लगता है। यह कहना अतिश्योक्ति नही होगी की एक तंदूरी शेफ अपनी पूरी ताक़त और जवानी लगा
देता है, इस कला में निपुणता प्राप्त करने के लिए। गुरु
के निरक्षण मे ही वो कुल्चे की बनावट और स्वाद प्राप्त करने के लिए लंबे समय तक इसका
अभ्यास करते रहते हैं।"
एक दोहा जो इस संदर्भ
में फिट बैठेगा -
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।रसरी आवत-जात के, सिल पर परत निशान ।।
(कुए से पानी खींचने के
लिए बर्तन से बाँधी हुई रस्सी कुए के किनारे पर रखे हुए पत्थर से बार-बार रगड़ खाने से पत्थर पर भी निशान बन जाते हैं। ठीक इसी प्रकार बार-बार अभ्यास करने से ऐसा व्यक्ति
भी जो कम जनकार हो कई नई बातें सीख कर उनका जानकार हो जाता है।)
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Kulcha ( Courtesy :- Pakshala) |
All baked breads are
not Indian and kulcha are one of these breads which are influenced by
Persian & Mughlai origin bread called NAAN."वैसे तो आलू भी हमारा नही, ना प्याज और ना ही मिर्च परन्तु भरवां के बाद जो बना ना वह हमारा अमृतसरी कुल्चा है "Puri, Paratha, Bhatura these
fried breads are from Indian origin.
आज जब मैं पीछे मुड़कर
देखता हूं, तो मुझे वे पाक-यात्राएं अधिक उत्साहित करती हैं, जिनमें मैंने स्थानीय
स्वादों का स्वाद चखा और लगा की काश एक और दिन होता हाथ में। एक वैसी पाक-यात्रा जो मेरी स्मृति में अंकित है वह है अमृतसर की यात्रा।
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Courtesy :- Pakshala |
क्षेत्रीय व्यंजन हमारे भारतीय सभ्यता के खजाने हैं। इसे इस
तरह से संयोजित करना चाहिए कि पीढ़ियां इनके बारे में और जान सकें और लाभान्वित हो
सकें।
Darbar Sahib को याद करते
हुए.....
"वाहे गुरू का ख़ालसा! वाहे गुरू की फ़तेह!"
The above write up is as per my experience and
learning and for the reading pleasure of the views............